अंततः तमाम रास्ते पहुँचते हैं वहीँ
जहाँ से होता है जीवन का
उद्भव, अंकुरण और
बिखराव के
मध्य,
कहीं न कहीं हम जुड़े रहे सुरभित -
समीर के संग, अदृश्य प्रणय
बंध में एकाकार, वो
सूत्रधार कोई
और न
था नियति के सिवाय, जो रहा हर
पल नेपथ्य में मूक दर्शक बन,
समय का अपना ही है
आकलन, बहुत
कठिन है
हल करना, धुप - छाँव का ये गहन
समीकरण - -